फुकुशिमा पर नारायण भाई की कविता



 कुदरत कब तक माफ़ करेगी?
 कब तक सृष्टि विष उगलेगी?
बार बार तुम चूक चुके हो, सोचो कब तक धीर धरेगी?
प्रकृति कितनी धीर धरेगी?
पुनः पुनः है तुमको टोका, तुमने अपना दौर न रोका 
आँखों पर पट्टियाँ बाँध कर दौड़ तुम्हारी चलती रहेगी?



3-माइल आइलैंड हुआ इशारा, गर्व नशा ना गया तुम्हारा  
आग लगी जब पड़ोसी के घर, तेरी कुटिया बची रहेगी?
स्फोट हुआ जब चेर्नोबिल में, धड़कन बढी न तब भी दिल में? 
हम अपराजित सदा  रहेंगे, भ्रम तुम्हारा बचा रहेगा ?
उधर हुए भूकंप सुनामी, इधर हमने सोच ही थामी,  
रेत में कब तक चोंच गड़ाकर, शुतुरमुर्गी रखवाली मिलेगी? 
अथ हुआ जब हिरोशिमा, इति करो तब फुकुशिमा  
पूरी मानवता की खातिर अंधी दौड़ न अब भी रुकेगी?
स्वार्थ और अधिकार-लालसा,  दावत दे-दे लायें हादसा   
निकट की ही सोच समझ से, मानवता क्या टिक पायेगी?  


   


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