महाराष्ट्र में न्यूक्लीयर संकट - प्रफुल्ल बिदवई

जैतापुर दुनिया का सबसे बड़ा न्यूक्लीयर विद्युतगृह बन जाएगा जिसमें 9,900 मेगावाट, अर्थात् भारत की वर्तमान न्यूक्यर क्षमता से दो गुनी से अधिक बिजली पैदा होगी।

पर इससे नाजुक परिस्थिकी प्रणाली और हजारों की जीविकाओं का अपूरणीय विनाश भी होगा। यह उस आर्थिक बर्बादी को कहीं बड़े स्तर पर दोहराएगी जिसे एनरोन पावर स्टेशन कहा जाता है। इससे पैदा होने वाली बिजली अन्य स्रोतों के मुकाबले तीन से चार गुना अधिक महंगी होगी। यह छोटी-मोटी नहीं, बल्कि एक क्रूर विडम्बना है कि एनरोन प्लाट भी रत्नागिरी में ही स्थित है।

परंतु जैतापुर एक न्यूक्लीयर एनरोन होगा- जिसमें दुनिया भर के प्रत्येक व्यवसायिक आणविक रिएक्टर की तरह वैसी ही विनाशकारी दुर्घटनाएं हो सकती हैं। जैसी कि 1986 में यूक्रेन के चेर्नोबल में हुई थी। सही है कि इसकी कोई बड़ी आशंका नहीं है, पर ऐसा हो तो सकता ही है। रिएक्टर कोर के पिघलने इतने विशाल है कि इनको किसी भी तरह से स्वीकार नहीं किया जा सकता है। चेर्नोबल दुनिया का सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना है। जिनसे विकिरणजनित कैंसर और अन्य प्रभावों से एक अनुमान के अनुसार 65,000 से 110,000 लोगों की जान चली गई थी।

ऐसी आशंकाएं सनसनी पैदा करने के लिए नहीं हैं। जिन वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने न्यूक्लीयर रिएक्टरों की डिजाइन बनाई है, इसको चलाया है या लाइसेंस दिया है, उन्होंने बड़ी संख्या में हमें चेतावनी देते हुए लिखा है कि इनमें ऐसी भयानक दुर्घटनाएं घट सकती हैं, जिनमें विखंडन श्रृंखला प्रतिक्रिया नियंत्रण से बाहर जा सकती है। जिससे कूलेंट (जो आमतौर पानी होता है, जिसको रिएक्टर से गर्मी को तेजी से हटाते रहना चाहिए) खत्म हो जाता है, और कोर पिघल जाता है तथा इसमें विस्फोट हो जाता है। जोखिम जैतापुर में कहीं अधिक हो सकता है क्योंकि प्रोजेक्ट भूकंपीय तौर पर सक्रिय क्षेत्र में है और रिएक्टर की उस डिजाइन पर आधारित है जिसको अभी परीक्षित और प्रमाणित नहीं किया गया है। अरेव का यूरोपियन प्रेशराइज्ड रिएक्टर (ईपीआर) समस्याओं से ग्रसित है और इसे किसी भी देश की न्यूक्लीयर अथॉरिटी ने अपनी स्वीकृति नहीं दी है। इसके बावजूद अपनी बेमिसाल बेवकूफी की मिसाल पेश करते हुए भारत छह ईपीआर स्थापित करना चाहता है। और वो भी तब जबकि परमाणु ऊर्जा विभाग या एनपीसीआईएल के पास इनकी सुरक्षा का आकलन करने की तकनीकी क्षमता नहीं है। पर जैतापुर प्रोजेक्ट को लेकर सरकार इस बुरी तरह से वंजिद रही है कि इसने फ्रांस के साथ समझौता होने के चार साल पहले, और पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट के तैयार और स्वीकार होने से पहले ही इनसे 2,420 एकड़ जमीन को अधिग्रहित करने का काम शुरू कर दिया है।

भारत के पर्यावरण कानून के अधीन गांववालों को उनकी स्थानीय भाषा में ईआईआर रिपोर्ट अनिवार्य जन-सुनवाई से एक महीना पहले उपलब्ध कराई जानी चाहिए। लेकिन जैतापुर के पांच प्रभावित गांवों में से रिपोर्ट केवल एक को मिली और वो भी पिछली मई में झूठ-मूठ की सुनवाई से केवल एक दिन पहले।

यह जनतंत्र पर बड़े हमले जैसा है। लोग प्रोजेक्ट का विरोध अपनी रोजी-रोटी को नष्ट होने से बचाने के लिए करते हैं जैसा कि इसके पास के तारापुर रिएक्टर ने किया है। जैतापुर की आबादी अत्यंत शिक्षित है, और वो विकिरण के खतरों तथा सुरक्षा के मामले में डीऐई के खराब प्रदर्शन को जानती है जिसमें तारापुर के सैकड़ों लोगों का विकिरण का शिकार होना शामिल है। जब यह स्वीकार्य सीमा से अधिक हो गया था इसको जाड़ूगोड़ा में यूरेनियम खनन से पैदा आनुवांशिक विकृतियों और विभिन्न स्थानों में लगे रिएक्टरों के निकट कैंसर की बढ़ी हुई घटनाओं की भी जानकारी है।

परियोजना के विरोध का जनसंकल्प प्रभावशाली है। 95 फीसदी से अधिक ने अपनी जमीन के बदले 10 लाख प्रति एकड़ का मुआवजा लेने से इंकार कर दिया है। शेष 5 फीसदी वो है, मुम्बई में रहते और खेती खुद नहीं करते हैं।

दमन के सम्मुख किसानों ने असहयोग और अवज्ञा आन्दोलन छेड़ दिया है। उन्होंने राज्य कर्मचारियों को खाद्य पदार्थ और दूसरी चीजें बेचना बंद कर दिया है। हाल ही में सरकार ने जब शिक्षकों को छात्रों का दिमाग पलटने और उनको यह विश्वास दिलाने का आदेश दिया कि न्यूक्लीयर बिजली स्वच्छ और पर्यावरण के अनुकूल है, तब कुछ दिनों के लिए लोगों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया। गणतंत्र दिवस पर दस गावों में तिरंगा नहीं फहराया गया है। जैतापुर में सरकार बांटो और राज करने के दांव पेचों का इस्तेमाल करना चाह सकती है, जिसके अंतर्गत मुस्लिमों (आबादी के 30 फीसदी) और हिन्दुओं के बीच तनाव पैदा कर सकती है, अपने दलालों के जरिए हिंसा भड़का सकती है और सारे विरोध को माओवादीनक्सलवादी घोषित कर सकती है। जैसा कि हाल ही में जनआन्दोलनों को कुचलने के लिए किया जा रहा है। इन तरीकों का पर्दाफाश और विरोध किया जाना चाहिए। जैतापुर रिएक्टर एक और खतरा खड़ा करते हैं। ठंडा करने वाले पानी का ऊंचा तापमान जो समुद्र में छोड़ा जाएगा। यह 5 डिग्री अधिक गर्म होगा और कच्छ वनस्पति मूंगे तथा अनगिनत प्रकार की समुद्री प्रजातियों को नष्ट कर देगा, जिससे आक्सीजन की उपलब्धता में कमी आ जाएगी।
प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान ने इस प्रभावों या पर्यावरण प्रणाली की वाहक क्षमता का अध्ययन नहीं किया है। यह उच्च स्तरीय अपशिष्ट का तो उल्लेख तक नहीं करता। एमओईफ ने प्रोजेक्ट को फिर भी स्वीकृति दे दी है, जो जाहिर है राजनीतिक कारणों से दिसम्बर में फ्रांसीसी राष्ट्रपति निकालेस सरकोजी की यात्रा से एक सप्ताह पूर्व किया गया है।

जैतापुर पक्के तौर पर एक तबाही है, जिसको कि दुनिया भर में संकट में फंसे न्यूक्लीयर उद्योग की दलाली करने के लिए हाथ में लिया गया है जो बुरी तरह से नए आर्डरों के लिए भूखा बैठा है। 10 से 20 साल के भीतर, दुनिया के 420 में से 150 से ज्यादा रिएक्टर काम करना बंद करने वाले हैं। केवल 60 नए रिएक्टर लगाने की योजना है जिनमें से दो तिहाई चीन, भारत और दक्षिण कोरिया में लगने हैं, जबकि पश्चिम में शायद ही कोई हो। स्पष्ट है कि पर्यावरण के प्रति पश्चिम में ज्यादा जागरूकता है और न्यूक्लीयर शक्ति का अधिक लंबा अनुभव भी।

पूरी दुनिया में न्यूक्लीयर शक्ति अपनी प्रौद्योगिक क्षमता खो चुकी है। इसका भविष्य अंधेरे में है। भारत को चाहिए कि वो न्यूक्लीयर शक्ति की मृगतृष्णा के पीछे दौड़ना बंद करें- और जैतापुर योजना को रद्द करे।

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